Sunday, March 15, 2009

प्यार के नाम

अफसाना बनाने चला था मैं
उसको दीवाना बनाने चला था मैं
देख कर इक झलक उसकी
रूह_ऐ तमन्ना कह उठी
अब इबादत करूँ किसकी
खुदा की या उस चाँद की

दीवाना कर दिया उसकी इक नज़र ने
बेकरार कर दिया उसकी उसी नज़र ने
या खुदा मुझे कोई तो रास्ता बता दे
या वो रुख से नकाब उठा दे
या तू रुख से नकाब उठा दे

मेरी इक इल्तिजा मान मेरे मौला
मुझको मेरे महबूब का दीदार करा दे
दिखती है उसकी सूरत में तेरी सूरत
कुछ ऐसा कर मेरे मौला
उसके रुख से नकाब हटा दे

यदि देना है नज़राना तुझे मेरी बंदगी का
मेरी इबादत का मेरे रोजे का
मेरे मौला कर इशारा कुछ ऐसा
या तू देख मेरी ओर
या नज़र उसकी मुझ पर कर दे

अब और किसी जन्नत का मुझे सबाब नहीं
उसके कदमों में मेरी जन्नत है
बस इक आरजू है इल्तजा है
इक बार रुख से नकाब उठ जाए
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए।।
ज्ञानेंद्र
rastey2manzil।blogspot।com

3 comments:

  1. Sundar abhivyakti hai..badhai !!
    ____________________________________
    गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!

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  2. Gud.......achcha hai....Congratulations..!!!

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